शरद पूर्णिमा के उपलक्ष पर अपनी भावनाओं को प्रकट करते हुए राजीव चौबे


भिलाई :- आजशरद पूर्णिमा पर अपनी भावना को प्रकट करते हुए स्मृति गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित के अध्यक्ष राजीव चौबे ने दो शब्द लिखें


पूर्णेन्दु के सौंदर्य से सुशोभित सम्पूर्ण आकाश है ,
गंध लिये पारिजात की बह रही शीतल वातास है ,
सप्तवर्णी मयूरों का मलय शाखों पे हो रहा प्रवास है ,
धरा अपलक देख रही आज चंद्र गगन का मधुमास है !

स्निग्ध चंद्र की प्रकाशित धवल चांदनी है ,
बाहों में मेघों के लिपटी उज्जवल दामिनी है ,
रागों के संग अटखेली करती स्वछंद रागिनी है ,
काम के पाश में बाधने चली स्वयं कामिनी है !

कर रहे अठखेलियां प्रसून प्रपात प्रमुदित पवन है,
प्रणय पाश में बंधे सरित सिंधु का हो रहा मिलन है,
प्रेम मुग्ध सुमन लताएं कर रही तरु आलिंगन है ,
वृत्ति मदहोश रति मदहोश मदहोश मदन है !

मोगरे की वेणियों से गुंथी , मेघ वर्णी लटें केशों की ,
जब धरा पर खींचती हों लकीरें मदमस्त सर्पिणी सी,
रोम रोम को कर रही झंकृत ध्वनि मेखला की ,
निष्प्राण काया को जगा रही गर्म साँसें संजीवनी सी !

मदिरा के सौ प्याले हुए हैं तेरे ये दो मादक नयन ,
हो रहा निरंतर प्रतिध्वनित तप्त ह्रदय का स्पंदन ,
गुलाब की पंखुड़ी से अधर कर रहे प्रणय निवेदन ,
चाँद पाने की आस में चकोर सा व्याकुल हुआ मन !

पूर्ण यौवन के मद को स्पर्श करता पूर्ण चन्द्रमा,
कर रहा भ्रमर नव प्रसून से अभिसार की याचना ,
है मुझे प्रिये तुम्हारे अधरों पर अधिकार की कामना ,
तोड़ सारे प्रतिबन्ध मिलो कह रही शरद की पूर्णिमा !!

राजीव चौबे


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