नई दिल्ली। कोर्ट मैरिज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। मद्रास हाईकोर्ट के निर्देशों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, वकील चैंबर में सहमति वाले विवाह ( प्रेम विवाह) के लिए सार्वजनिक अनुष्ठान या घोषणा की जरूरत नहीं है। कोई भी जोड़ा एक-दूसरे को माला पहनाकर या अंगूठी पहनाकर शादी कर सकते है। विवाह की प्रक्रिया में वकील, अदालत के अधिकारी की पेशेवर हैसियत से नहीं, बल्कि विवाह जोड़े के मित्र, रिश्तेदार या सामाजिक कार्यकर्ता की हैसियत से हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7(ए) के तहत विवाह संपन्न करा सकते हैं। यह फैंसला जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया था।
मद्रास हाईकोर्ट का विचार गलत
मद्रास हाईकोर्ट ने अपने निर्देश में कहा था कि, वकीलों के जरिए कराई जाने वाली शादी मान्य नहीं हैं। साथ ही सुयम्मरियाथाई विवाह (आपसी सहमति विवाह) को गुप्त रूप से संपन्न नहीं किया जा सकता है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मदर्स हाईकोर्ट के निर्देशों को नकारते हुए कहा कि, बालाकृष्णन पांडियन मामले 2014 में मद्रास हाईकोर्ट की ओर से व्यक्त किया गया विचार गलत था। यह इस धारणा पर आधारित है कि प्रत्येक विवाह के लिए सार्वजनिक अनुष्ठान या घोषणा की आवश्यकता होती है। ऐसा दृष्टिकोण काफी साधारण है, क्योंकि अक्सर माता-पिता के दबाव के कारण विवाह में प्रवेश करने का इरादा रखते वाले जोड़े शादी के बंधन में नहीं बंध पाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला धारा 7ए के अनुसार, स्व-विवाह प्रणाली पर आधारित था। धारा 7ए को तमिलनाडु संशोधन द्वारा हिंदू विवाह अधिनियम में शामिल किया गया था। इस धारा के अनुसार दो हिंदू अपने दोस्तों या रिश्तेदारों या अन्य व्यक्तियों की उपस्थिति में बिना रीति-रिवाजों का पालन किए या बिना किसी पुजारी के विवाह की घोषणा किए, विवाह कर सकते हैं।
सार्वजनिक घोषणा से खतरे में पड़ सकता है जीवन
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी का इरादा रखने वाले नवयुगल जोड़े पारिवारिक विरोध या अपनी सुरक्षा के डर जैसे विभिन्न कारणों से सार्वजनिक घोषणा करने से बचते हैं। ऐसे मामलों में सार्वजनिक घोषणा को लागू करने से जीवन खतरे में पड़ सकता है और अलगाव की स्थिति निर्मित बन सकती है।