बिलासपुर :- दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर वैसे तो यात्री और मालगाड़ी ट्रेन चलाकर करोड़ों रुपए की आय अर्जित कर रहा है लेकिन पानी का टैक्स पटाने में फिसड्डी साबित हो रहा है। जल संसाधन विभाग ने रेलवे के अधिकारियों को नोटिस भेज कर 16 करोड़ रुपए से ज्यादा का बकाया बताया है। जलकर का यह बकाया भी कोई एक दो साल का नहीं बल्कि 14 से 15 सालों के बीच का है। जब भी जल संसाधन विभाग रेलवे के अधिकारियों को नोटिस भेजते हैं थोड़ा बहुत पैसा चुकाकर मामले पर पर्दा डालने का प्रयास किया जाता है।








रेलवे के अधिकारियों का रवैया पानी का टैक्स पटाने में फेल है यही कारण है की आम लोग सवाल कर रहे हैं कि जब केंद्र की इतनी बड़ी संस्था रेलवे रॉयल्टी के तौर पर पानी का टैक्स जमा नहीं कर रही है तो आखिर सरकारी विभाग आम लोगों से पानी टैक्स पटाने को लेकर हमेशा दबाव क्यों बनता है और सबसे जो बड़ी बात है कि जब कभी लोग अपनी टैक्स नहीं पटाते तो उन्हें पेयजल आपूर्ति बाधित होने की बात कहते हुए कई तरह से नोटिस भेजा जाता है।
दरअसल राज्य सरकार की जल संसाधन विभाग ने रेलवे को जो नोटिस पानी टैक्स को लेकर भेजा है वह कमर्शियल उपयोग को लेकर है। जल संसाधन विभाग रेलवे और नगर निगम यानी दो सरकारी विभागों से पानी का टैक्स लेता है। रेलवे अपने उद्योगों के अलावा ट्रेनों को धुलने और बाकी चीजों के लिए राज्य सरकार के पानी का इस्तेमाल करता है। इसके लिए बड़ी-बड़ी वाशिंग लाइन बनाई गई है। जानकारों की माने तो लगभग हर दिन बिलासपुर में 50 ट्रेन इन वाशिंग लाइन पर धुलती है और लगभग 3500 लीटर पानी खपत होता है कुल मिलाकर समझा जा सकता है कि किस तरह रेलवे पानी का इस्तेमाल करता आ रहा है।जिसका ही जलकर पटाना दायित्व है। लेकिन पिछले 14 सालों से यह जलकर नहीं चुकाया गया है और यही वजह है कि समय-समय पर दिखावे के लिए जल संसाधन विभाग रेलवे को नोटिस जारी करता है रेलवे भी इसकी खानापूर्ति करता आ रहा है।
यह तो रही रेलवे की बात अब नगर निगम का हाल देखिए। पानी के टैक्स के रूप में जल संसाधन विभाग को नगर निगम के अधिकारी 4571 लाख रुपए नहीं दे सके हैं। इनका भी बकाया 10 साल पुराना है। नगर निगम शहर और कॉलोनी में जमीन से पानी निकाल कर लोगों को उपलब्ध करवाता है यह पैसा उसी का है। नगर निगम इसके नाम पर लोगों से टैक्स ले रहा है लेकिन वह जल संसाधन विभाग को खुद का टैक्स नहीं दे रहा है समझ सकते हैं कि आखिर जल संसाधन विभाग को राजस्व की कितनी बड़ी हानि हो रही है। यही हाल उन 32 से ज्यादा औद्योगिक संस्थाओं का है जिन्होंने धंधे के रूप में जल संसाधन से पानी का रजिस्ट्रेशन तो कराया है लेकिन करोड़ों रुपए पानी टैक्स का नहीं चुकाया कुल मिलाकर हालात ऐसे ही है और लोगों को पानी की दिक्कत होती जा रही है।