एवरेस्ट की छांव में: पर्यावरण चेतना और संगठनात्मक संकल्प की एक साहसिक यात्रा


किसी भी संस्था की प्रतिष्ठा केवल उसकी उत्पादन क्षमता या व्यावसायिक प्रदर्शन से नहीं मापी जाती, बल्कि उस संस्था के कर्मियों की सामाजिक चेतना, पर्यावरणीय जिम्मेदारी और साहसिक दृष्टिकोण से भी आँकी जाती है। भिलाई इस्पात संयंत्र कर्मियों के एक छोटे से दल के द्वारा की गई एवरेस्ट बेस कैंप की 23 दिवसीय यात्रा इसका सशक्त उदाहरण है। यह यात्रा एक व्यक्तिगत रोमांच मात्र नहीं थी, अपितु यह संगठनात्मक उद्देश्य, पर्यावरणीय संदेश और अंतरराष्ट्रीय संवाद का एक जीवंत संकल्प बन गई।
यह अभियान 30 मार्च 2025 को भिलाई से आरंभ हुआ, जब सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों का एक छोटा सा दल जिसमें संयंत्र के मानव संसाधन – नियमन अनुभाग के श्री पवन कुमार शर्मा, युनिवर्सल रेल मिल के श्री देवेंद्र कुमार सिंह, व उनके साथ संयंत्र के स्टील मेल्टिंग शॉप-1 के सेवा निवृत्त-कर्मी श्री एन.के. सिंह एवं उनके पुत्र श्री अभिजीत सिंह एवरेस्ट बेस कैंप के लिए रवाना हुए। संयंत्र प्रबंधन द्वारा इस यात्रा को प्रोत्साहन देते हुए विशेष अवकाश प्रदान किया गया तथा पर्यावरण विभाग द्वारा पर्यावरणीय संदेशों से युक्त विशेष बैग दिए गए, जिन्हें यात्रा मार्ग में वितरण हेतु प्रयोग किया गया। इन बैगों पर वृक्षारोपण, जल संरक्षण, और हरित परिवेश जैसे विषयों पर सशक्त संदेश मुद्रित थे, जो यात्रियों को ‘कंपनी के दूत’ की भूमिका में परिवर्तित कर रहे थे।
यह रोमांचक पर्वतारोहण अभियान दुर्ग रेलवे स्टेशन से आरंभ हुआ, जहाँ यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया की छत्तीसगढ़ इकाई के वरिष्ठ प्रतिनिधियों ने दल को शुभकामनाएँ देते हुए विदा किया। भारतीय रेल से दल रक्सौल पहुँचा, जो नेपाल की सीमा के समीप स्थित भारत का अंतिम रेलवे स्टेशन है। वहाँ से काठमांडू की सड़क यात्रा, फिर रामेछाप एयरपोर्ट होते हुए लुकला पहुँचने का प्रयास, एक जटिल और समयसाध्य प्रक्रिया रही।
लुकला की सीधी फ्लाइट न मिलने के कारण दल को फोपलू एयरपोर्ट तक वैकल्पिक मार्ग से जाना पड़ा। वहाँ से लगभग आठ घंटे की थका देने वाली कठिन पहाड़ी सड़क यात्रा के उपरांत सुरके नामक एक स्थान पर पहुँचना संभव हुआ। इस दौरान पहाड़ी पथरीले मार्ग, बर्फीली हवाएँ और सीमित सुविधाओं ने यात्रा को अत्यंत चुनौतीपूर्ण बना दिया। दल के सदस्यों को पहाड़ों की कठोरता के साथ-साथ मानव मन की दृढ़ता का भी परिचय इस यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ।
यात्रा के आगे के चरणों में फकडींग, नामचे बाजार, टेंगबोचे, डिंगबोचे, लोबुचे होते हुए गोरकशेप तक पदयात्रा की गई। प्रत्येक चरण पर बढ़ती ऊँचाई और कम होती ऑक्सीजन का प्रभाव स्पष्ट रूप से महसूस किया गया। विशेषकर जब एक सदस्य को हाई अल्टीट्यूड सिकनेस के प्रारंभिक लक्षण जैसे चक्कर और उल्टी का सामना करना पड़ा, तब पूर्व तैयारियों और तीन माह की नियमित अभ्यास की उपयोगिता सिद्ध हुई। अधिक पानी पीने और विश्राम से समस्या नियंत्रित हुई, और टीम बिना दवा के ही आगे बढ़ सकी।
इस समस्त यात्रा में भोजन की सीमाएं भी एक यथार्थ थीं। ऊँचाई के साथ खाद्य पदार्थों का मूल्य दोगुना से लेकर दस गुना तक बढ़ गया। दाल-भात, सब्जी और अचार जैसे साधारण भोजन ही उपलब्ध थे, परंतु टीम ने हर परिस्थिति में संतुलन बनाए रखा।
नामचे बाजार पर विश्राम की सलाह को दल ने अपनी शारीरिक स्थिति का आकलन कर पार करते हुए अगले पड़ाव की ओर कूच किया। टेंगबोचे से डिंगबोचे और फिर लोबुचे तक की यात्रा सुगठित रही। गोरकशेप में विश्राम के बाद जब अंततः बेस कैंप की ओर प्रस्थान हुआ, तो मन में उत्साह और श्रद्धा का संगम था। जैसे ही एवरेस्ट बेस कैंप के दर्शन हुए, वह क्षण दल के लिए भावनात्मक और गौरवमयी बन गया। वहाँ तिरंगा फहराकर सभी ने अपने परिवार, संस्थान और देश को स्मरण किया।
इस अभियान में एक उल्लेखनीय पहलु यह रहा कि दल द्वारा वितरित पर्यावरणीय बैगों ने विभिन्न देशों से आए पर्यटकों के बीच संवाद का माध्यम बनाया। विशेष रूप से पश्चिमी देशों के पर्यटकों ने भिलाई इस्पात संयंत्र, उसके कार्य और पर्यावरणीय दृष्टिकोण में गहरी रुचि दिखाई। नेपाली नागरिकों से संवाद के दौरान जब यह बताया गया कि सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र रेल बनाती है, तो लगभग सभी का भावपूर्ण अनुरोध था कि नेपाल में भी रेल सेवा भारत की सहायता से आरंभ हो। यह एक सामान्य बातचीत नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सहयोग और सामाजिक अपेक्षा का प्रतिबिंब थी।
30 मार्च 2025 को भिलाई से आरंभ यह यात्रा अंततः 21 अप्रैल 2025 को सम्पन्न हुई, कुल 23 दिनों में तय की गई यह साहसिक यात्रा न केवल शारीरिक क्षमता की कसौटी थी, बल्कि यह एक संस्थान की विचारधारा, सामूहिकता और उत्तरदायित्व का परिचायक बनी। भिलाई वापसी के उपरांत, सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के कार्यपालक निदेशक (मानव संसाधन) श्री पवन कुमार तथा मुख्य महाप्रबंधक (मानव संसाधन) श्री संदीप माथुर द्वारा दल को कार्यालय में आमंत्रित कर व्यक्तिगत रूप से बधाई देना, यह दर्शाता है कि संगठन अपने कर्मियों के प्रयासों को केवल मान्यता ही नहीं देता, बल्कि उन्हें प्रेरणा में भी परिवर्तित करता है।
सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के कर्मचारियों के दल की यह एवरेस्ट यात्रा सिखाती है कि यदि संस्था अपने कर्मियों को नवाचार, सामाजिक उत्तरदायित्व और आंतरिक प्रेरणा के लिए प्रोत्साहित करे, तो वे किसी भी शिखर तक पहुँच सकते हैं। यह केवल एक पर्वतीय यात्रा नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना, संस्थागत गौरव और मानवीय संवाद की यात्रा थी एक ऐसा अभियान, जो आने वाले वर्षों तक प्रेरणा देता रहेगा।
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