छत्तीसगढ़ में एक विभूति को अब तक तीनों पद्म सम्मान, तो 29 विभूतियों को पद्मश्री अवॉर्ड


रायपुर। छत्तीसगढ़ से तीन विभूतियों को पद्मश्री सम्मान (Padma Shri Award) के लिए चुना गया है. जिसमें जशपुर के जागेश्वर यादव, रायगढ़ के रामलाल बरेठ और नारायणपुर के हेमचंद मांझी का नाम शामिल है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पद्मश्री से नवाजे जाने वाले तीनों विभूतियों को बधाई दी है. बता दें कि छत्तीसगढ़ की एक महान विभूति हैं जो देश के तीनों सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री से सम्मानित हो चुकी हैं. वो और कोई नहीं पंडवानी गायिका तीजन बाई हैं. वहीं प्रदेश के अब तक 29 विभूतियों को पद्मश्री अवॉर्ड मिल चूका है.

भारत सरकार ने देश के 110 विभूतियों को पद्मश्री सम्मान दिए जाने का एलान किया गया है. इन विभूतियों में छत्तीसगढ़ के पंडित राम लाल बरेठ को कला क्षेत्र में, वैद्यराज हेमचंद मांझी को चिकित्सा क्षेत्र में और जागेश्वर यादव को समाज सेवा के क्षेत्र में उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए पद्मश्री सम्मान प्रदान किया जाएगा.

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जागेश्वर यादव और हेमचंद मांझी

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने पंडित राम लाल बरेठ, जागेश्वर यादव और वैद्यराज हेमचंद मांझी को इस गौरवपूर्ण उपलब्धि के लिए बधाई दी है. इसके साथ ही कहा कि विशेष पिछड़ी जनजाति बिरहोर और पहाड़ी कोरवा की भलाई के लिए जागेश्वर यादव ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है. मुख्यमंत्री ने पद्मश्री सम्मान के लिए जागेश्वर यादव के चयन पर प्रसन्नता जताते हुए उन्हें दूरभाष पर बधाई दी. मुख्यमंत्री ने वैद्यराज हेमचंद मांझी द्वारा नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके में पारंपरिक औषधि जड़ी-बूटी से बीते पांच दशकों से जरूरतमंद लोगों का इलाज को उनकी सेवा का प्रतिफल कहा है. कथक के मूर्धन्य नर्तक पंडित राम लाल बरेठ ने कला के लिए अपना जीवन समर्पित किया है. रायगढ़ के रहने वाले पंडित राम लाल बरेठ के पिता कार्तिक राम बरेठ भी कथक के मूर्धन्य नर्तक रहे है. पंडित राम लाल बरेठ को संगीत नाटक अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया है. मुख्यमंत्री ने कहा है कि इन तीनों विभूतियों ने अपने-अपने क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय कार्य से राष्ट्रीय स्तर छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित किया है.

जशपुर के जागेश्वर यादव, की प्रसिद्धि बिरहोर के भाई के रूप में है. आदिवासी कल्याण कार्यकर्ता श्री यादव ने अपना पूरा जीवन बिरहोर और पहाड़ी कोरवा जनजाति के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है. उन्होंने जशपुर में आश्रम की स्थापना की और निरक्षरता उन्मूलन और स्वास्थ्य सेवा के मानकों को बेहतर बनाने का काम किया है.

नारायणपुर के हेमचंद मांझी ख्याति प्राप्त वैद्य है. वह 15 साल की उम्र से ही अपने पारंपरिक औषधि ज्ञान से जरूरतमंद लोगों का इलाज कर रहे है. विभिन्न बीमारियों से पीड़ित लोगों से वह इलाज के लिए बहुत कम राशि लेते हैं. जब उनकी उम्र 15 वर्ष की थी, तभी से वह जरूरतमंदों की चिकित्सा कर रहे है. अबूझमाड़ के जंगलों में पाई जाने वाली जड़ी-बूटियों का उन्हें विशेष ज्ञान है.

पंडित रामलाल बरेठ

छत्तीसगढ़ में अब तक 29 लोगों को Padma Shri Award

यहां यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 1976 से लेकर 2023 तक छत्तीसगढ़ में 26 लोगों को पद्मश्री सम्मान मिल चुका है. पंडित राम लाल बरेठ, जागेश्वर यादव और वैद्यराज हेमचंद मांझी का नाम पद्मश्री के लिए घोषित होने पर पद्मश्री सम्मान से विभूषित होने वालों की संख्या 29 हो जाएगी.

पंड़वानी गायिका तीजन बाई को मिला है तीनों पद्म सम्मान

विश्व विख्यात पंडवानी गायिका तीजन बाई छत्तीसगढ़ की एक मात्र ऐसी हस्ती है, जिन्हें भारत सरकार द्वारा भारतीय नागरिकों को दिया जाने वाला तीनों पद्म सम्मान मिला है. तीजन बाई को लोक गायन (पंडवानी) के क्षेत्र में उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों के लिए वर्ष 1988 में पद्मश्री, वर्ष 2003 में पद्म भूषण तथा वर्ष 2019 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया है.

जब CM ने जागेश्वर यादव को देखते ही बड़े ही अपनेपन से पास बुलाया

बीते 16 दिसम्बर की बात है. मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से मिलने और राज्य के 18 लाख बेघर लोगों को प्रधानमंत्री आवास की स्वीकृति के लिए मुख्यमंत्री का आभार व्यक्त करने के लिए जागेश्वर यादव रायपुर स्थित उनके सरकारी आवास पहुना पहुंचे थे. मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वालों की भीड़ और बेरिकेट देखकर दूर खड़े जागेश्वर यादव मुख्यमंत्री से मिलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे, जैसे ही मुख्यमंत्री लोगों से मिलने बाहर आए उनकी नजर दूर खड़े जागेश्वर यादव पर पड़ी और मुख्यमंत्री ने उन्हें जशपुरिया लहजे में बड़े ही अपनेपन से पुकारा ‘‘आ ऐती आ, उहां का खडे़ हस, मोर कोती आ‘‘.

जागेश्वर यादव अपने पास आते ही मुख्यमंत्री ने उन्हें गले लगाया, पूरे समय साथ ही रहे और समय-समय पर आत्मीय चर्चा करते रहे. जागेश्वर यादव ने मुख्यमंत्री को कैबिनेट की बैठक में प्रदेश के 18 लाख लोगों को आवास देने के निर्णय पर आभार जताया. उन्होंने कहा कि इस निर्णय से सरगुजा संभाग की विशेष पिछड़ी जनजाति के हजारों बिरहोर लोगों को आवास मिलने का रास्ता खुल गया है जो घास-फूस की झोपड़ियों में हर साल सरगुजा की कड़ी सर्दी गुजारते हैं.

जागेश्वर राम कभी चप्पल नहीं पहनते, वे कपड़े भी मामूली ही पहनते हैं. वे मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय से मिलने जब पहुना पहुंचे तो वे बैरिकेड के उस पार थोड़े से संकोच के भाव से अपनी बारी का इंतजार करते खड़े हो गये. मुख्यमंत्री श्री साय जब आये तो परिचितों से भेंट करते वक्त उनकी नजर दूर खड़े जागेश्वर राम पर गई. उन्होंने जागेश्वर को बड़े ही अपनेपन से आवाज लगाकर अपने पास बुलाया और उनसे मिले.

दरअसल जागेश्वर राम और मुख्यमंत्री साय के बीच आत्मीयता की जो कड़ी जुड़ी, वो प्रदेश की अति पिछड़ी जनजाति मानी जाने वाली बिरहोर जनजाति की वजह से जुड़ पाई. जागेश्वर, महकुल यादव जाति से आते हैं. अपने युवावस्था के दिनों में जब पहली बार वे बिरहोर जनजाति के संपर्क में आये तो इस विशेष पिछड़ी जनजाति की बेहद खराब स्थिति ने उन्हें बेहद दुखी कर दिया. वे शेष दुनिया से कटे थे. शिक्षा नहीं थी, वे झोपड़ियों में रहते थे. स्वास्थ्य सुविधा का अभाव था. उन्होंने संकल्प लिया कि अपना पूरा जीवन बिरहोर जनजाति के बेहतरी में लगाऊंगा. यह बहुत बड़ा मिशन था और इसके लिए उन्होंने अपनी ही तरह के संवेदनशील लोगों से संपर्क आरंभ किया. इसके चलते वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और तत्कालीन सांसद विष्णुदेव साय के संपर्क में आये. जागेश्वर राम ने उनके समक्ष इस जनजाति के विकास के लिए योजना रखी. उन्होंने उन्हें पूरे सहयोग के लिए आश्वस्त किया. इसके बाद सीएम साय के सहयोग से भीतघरा और धरमजयगढ़ में आश्रम खोले. शुरूआत में ऐसी स्थिति थी कि लोग आश्रम से अपने बच्चों को घर ले जाते थे लेकिन जब आश्रम में पहली पीढ़ी के बच्चे पढ़कर निकले और उनके जीवन में सुखद बदलाव आये तो बिरहोरों ने अपने बच्चों को यहां भेजना शुरू किया. इस गौरवमयी उपलब्धि के लिए राज्य अलंकरण समारोह में जागेश्वर यादव को शहीद वीर नारायण सिंह पुरस्कार से सम्मानित किया गया है.

खाट-पलंग की व्यवस्था की थी सीएम साय ने

जागेश्वर राम ने बताया कि मुख्यमंत्री साय ने सांसद रहते बिरहोर जनजाति के दुखदर्द को समझा. वे झोपड़ियों में सर्द रातें बिना खाट के गुजारते थे. सीएम साय ने उनके लिए खाट-पलंग की व्यवस्था की. वे 1980 से ही उनके साथ हैं और पहाड़ी कोरवा तथा बिरहोर जनजाति के इलाकों में जब भी दौरे पर जाते हैं जागेश्वर यादव को अपने साथ ही रखते हैं.


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