रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव का आगाज़ हो चूका है। निर्वाचन आयोग ने तारीख भी मुक़र्रर कर दिया है। चुनावी कवायद भी आयोग की शुरू है। ऐसे में सियासी पार्टियों के चुनावी प्रोग्राम के लिए सियासी दलों के पास वक्त बहुत कम बचा है। आंकलन करें तो विधानसभावार, लोकसभावार चुनावी योजना पर एकमात्र भाजपा संगठन ने ही जमीनी तैयारियां की है। तुलनात्मक आंकलन करें तो भाजपा का प्रदेश संगठन कई मायनों में प्रदेश कांग्रेस कमेटी से इस मामले में 2 महीना आगे हैं। इसलिए सत्ता दल और विपक्ष की तैयारियों के अलावा दोनों दलों के प्रदेश अध्यक्ष की क्षमताओं की तुलना होना स्वाभाविक भी है।


चुनावी कार्यक्रमों, संगठन में मजबूत पकड़ और कार्ययोजना के क्रियान्वयन के साथ ही ऐन चुनावी साल में सख्त अनुशासन में भी बीजेपी से पीसीसी पिछड़ती नज़र आ रही है। यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव पीसीसी चीफ मोहन मरकाम से इसमें भी बढ़त लिए दिखते हैं। ऐसा नहीं है कि मोहन मरकाम की अपेक्षा अरुण साव के सामने चुनौतियां कमतर हैं। देखा जाये तो पीसीसी चीफ मोहन मरकाम 4 साल से संगठन की कमान सम्हाल रहे हैं जबकि बीजेपी प्रदेश संगठन का जिम्मा अरुण साव को महज़ साल-डेढ़ साल पहले ही मिला है। बीजेपी में उनसे अरुण साव को डील करना पड़ रहा है जो 15 साल सत्ता का स्वाद चखे हैं, जबकि पीसीसी चीफ मोहन मरकाम इस मामले में सत्ता से बहुत दूर खड़े दिखाई देते हैं। ऐसे में मिशन 2023 के लिए कांग्रेस के प्रदेश संगठन और सत्ता अब भी करीब नहीं आये तो इसका खामियाज़ा भुगतना पद सकता है।

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क्यों खफा खफा से लगते हैं पीसीसी चीफ ?
पीसीसी की कमान मिलने के सालभर तक सब कुछ अच्छा अच्छा चला फिर संगठन में चुनाव, पदाधिकारियों के चयन के दौरान तल्खियां बढ़ी और यह बढ़ती चली गई। इसका नज़ारा राजीव भवन में संगठन-सत्ता के एक साथ बैठक के दौरान खुलकर सामने आ गया फिर सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी यह दिखाई देने लगा। वैसे भी कांग्रेस में एक खेमा नाराज़ चल रहा था वो भी संगठन से मिल गए और बदलाव की बयार बहने लगी थी जो अब भी वक्त-बे-वक्त चलती है। इन दूरियों और चुनाव में जनता के बीच जाने के लिए सब तय करने में माहिर टीएस सिंहदेव के बयां से लगता है वो पहले वाली भूमिका में नहीं काम करेंगे। पीसीसी चीफ अपने फैसले को बदल दिए जाने से आहत हैं और किंकर्तव्यविमूढ़ से है। पीसीसी चीफ की कोई सुनता नहीं या उन्हें कोई गंभीरता से लेता नहीं इसलिए प्रदेश प्रभारी कुमारी सेलजा को दिल्ली से भाग भाग कर आना पड़ रहा है।
मरकाम-सन्नी अग्रवाल केस से बढ़ती गईं दूरियां
पार्टी सूत्रों की मानें तो पीसीसी चीफ मोहन मरकाम से ज्यादा मजबूत स्थिति में अरुण साव ने निर्णय लिया और उन्होंने उद्दंड पदाधिकारियों, सदस्यों के अलावा कार्यकर्ताओं को बहार का रास्ता दिखाया। इसके उलट मोहन मरकाम भी पार्टी में अनुशासन, कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी और संगठन के लिए उपयुक्त पदाधिकारी पर काम किया। लेकिन एक सन्नी अग्रवाल वाले प्रकरण पर उन्हें निचा देखना पड़ा। प्रदेश अध्यक्ष के सामने कांग्रेस कार्यालय राजीव भवन में प्रदेश महामंत्री अमरजीत सिंह चावला से सन्नी अग्रवाल द्वारा की गई अनुशासनहीनता पर की गई कार्रवाई के बाद जो मोहन मरकाम को सहना पड़ा वह एक बड़ी वजह है। कांग्रेस भवन में मीडिया और पीसीसी चीफ के सामने गालियों का ऑडियो-वीडियो खूब वायरल हुआ था और पीसीसी चीफ ने सन्नी अग्रवाल के निलंबन का आदेश तात्कालीन प्रभारी महामंत्री रवि घोष को निर्देशित किया था। लेकिन उस मामले में सन्नी को सजा के बजाये प्रदेश के 400 करोड़ के बजट वाले श्रमकल्याण का अध्यक्ष बने रहने दिया। फिर बाहर से आये लोगों को पदों से नवाज़ने का दबाव भी रहा। खेमेबाजी और कार्यकाल पूरा होने के बाद पीसीसी में बदलाव की चली कोशिश इस खाई को और बढ़ा दी।