आचार्य चाणक्य ने मनुष्य जीवन के हर पक्ष के बारे में विस्तार से लिखा। उन्होंने जीवन में आ रही समस्याओं के समाधान और सफलता प्राप्त करने के उपायों के बारे में बात की। उनकी बताई नीतियां आज के समय और सन्दर्भ में भी उतनी ही उपयोगी सिद्ध होती हैं।
उन्होंने मानव जीवन की रक्षा के लिए एक बेहद उपयोगी श्लोक बताया। मानव जीवन का आधार परिवार, विद्या, धर्म और पद- ये चार कारक होते हैं। चाणक्य अपने श्लोक में इन्हीं चारों कारकों की रक्षा करने का उपाय बताते हैं। जानते हैं अपने जीवन की रक्षा करने का यह उपाय विस्तार में –
वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते।
मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम्॥
विद्या और धर्म की रक्षा होती है
ऐसे श्लोक की पहली पंक्ति में आचार्य जीवन के दो आधार- विद्या और धर्म की रक्षा के बारे में बताते हैं। धर्म की रक्षा धन से होती है। धन के बिना धर्म के कार्य नहीं हो सकते हैं। धार्मिक यात्राएं, दान का पुण्य, धर्म के अन्य काज बिना धन के संभव ही नहीं होते हैं।
इसके साथ ही विद्या की रक्षा योग से संभव होती है। अर्थात प्राप्त की गई विद्या या ज्ञान का बार-बार अनुकरण और अभ्यास किया जाना चाहिए। पढ़ा हुआ ज्ञान अगर उपयोग में ना लाया जाए तो वह व्यर्थ हो जाता है। इसलिए विद्या के निरंतर योग से ही उसकी रक्षा हो सकती है। परिवार और पद की रक्षा आचार्य चाणक्य के श्लोक की दूसरी पंक्ति में वे बताते हैं कि घर परिवार की रक्षा एक अच्छी स्त्री के द्वारा ही हो सकती है। गुणों से परिपूर्ण अच्छी स्त्री अपने परिवार को संकटों और दुखों से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने को राज़ी होती है।इसके साथ ही अपने पद की रक्षा कोमलता से की जाती है, यानि एक राजा के शासन की रक्षा उसके विनम्र रहने से ही होती है। इसलिए जीवन में विनम्रता को बनाये रखना चाहिए, जिससे अपने पद-प्रतिष्ठा को बनाये रखा जा सकता है।