राजगढ़। जिले के आगरा मुंबई राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे भाटखेड़ी गांव की एक अलग ही पहचान है । इसे सभी रावण वाली भाटखेड़ी नाम से जानते है – वजह यह है कि इस गांव के सभी ग्रामीण एकत्रित होकर दशहरे पर रावण की पूजा करते है। इस गांव में मार्ग किनारे बने खेत में सदियो पहले से रावण व कुंभकर्ण के सीमेंट कांक्रीट से काफी बड़ी प्रतिमा बनाई गई थी, खुले में रावण व कुंभकर्ण की खेत में बनी इन प्रतिमाओं को कब व किसने बनवाया था इसका इतिहास किसी को नही पता। खेत मालिक को भी नही पता कि यह कब किसने और किस वजह से बनवाई होगी। ग्रामीण प्रतिमा का देख रेख व मरम्मत करवाकर इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सदियों से सहेज कर रखे हुए है। हर दो तीन साल में कलर खराब होने पर दशहरे पर कलर करवा लेते हे।
सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी यहां दशहरे पर गांव के पटेल सहित पूरा गांव के निवासी व आस पास के गावो के लोग यहां आते है व रावण की पूजा अर्चना कर दशहरा पर्व मनाते है। नवरात्रि पर गांव के ही कलकारो द्वारा नो दिन रामलीला का मंचन किया जाता है व दशमी के दिन रामलीला का यहां रावण कुंभकर्ण की प्रतिमा के सामने राम रावण वध का मंचन किया जाता है, उसके बाद रावण की प्रतिमा की पूजा की जाती है। ग्रामीणों का मानना है कि यह रावण की प्रतिमा किसी देवी देवता से कम नहीं है, रावण के सामने आकर मांगी गई कई लोगो की मन्नते तक पूरी होती है व मन्नत पूरी होने पर यहा भंडारा करके जाते है। ग्रामीण बताते है कि कम बारिश होने, बारिश नही होने या गांव में कोई विपत्ति आने पर देवी देवताओं की पूजा अर्चना के बाद भी काम नही बनता तो रावण की शरण में आकर पूजा अर्चना करने से काम बन जाता है।